भारतीय भाषाएँ व राष्ट्रवाद
अध्याय १
भाषाएँ किसी देश की संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाती हैं, भारतीय परिपेक्ष्य में सम्प्रति इसका महत्व बहुत अधिक बढ जाता है, विश्व की सभी भाषाओँ को भाषाविदों ने मूलतः निम्नाकित श्रेणियों में विभक्त किया है।
१.इंडो यूरोपीय या भारत यूरोपीय भाषा
२.सेमेटिक या मध्य एशियाई भाषा समूह
३.अन्य एशियाई व आदिवासी भाषाएँ
भारतीय भाषाएँ मूलतः प्रथम समूह - इंडो यूरोपीय समूह में आते है, अंग्रेजी, जर्मनी, फ्रेंच व् फारसी के साथ, इस आलेख में मैं भारतीय भाषाओँ की साम्यता के बारे में संक्षित विश्लेषण करना चाहूँगा कि हम भारतियों में भाषा को ले कर ढेरों भ्रांतियां पायी जाती हैं, दरअसल हम सब एक साथ शताब्दियों से रह रहे हैं लेकिन फिर भी एक दूसरे से अनभिज्ञ हैं, और अकारण ही एक दूसरे की भाषाओँ को कोसते रहते हैं जबकि धरातल में भारतीय भाषाओँ का उद्गम संस्कृत, पालि व प्राकृत भाषाएँ हैं।
१. प्रथम सत्र में मैं हिंदी ( राजस्थानी, ब्रज, अवधी, मागधी, भोजपुरी मिश्रित ) व बांग्ला,उड़िया, असमिया भाषाओँ का वर्णन व विश्लेषण करना चाहूँगा / इतिहास में न जाते हुए हम देखेंगे कि तमाम उत्तर भारतीय भाषाएँ असल में एक हैं, कोस कोस में जैसे पानी और बोली बदल जाती है ठीक उसी तरह से मुख्य भाषाएँ समय समय में अपने मूल स्वरुप को नया कलेवर देती रहती हैं, बांग्ला - अर्ध मागधीय भाषा है, लिपि देवनागरी से ९०-९८ % तक मिलती है, बांग्ला कि मधुरता उसकी ग्राम्य या मागधीय अपभ्रंश की वजह से द्विगुणित होती है, संस्कृत शब्दों के अलावा साहित्यकारों ने इन मौलिक पालि या प्राकृत या यूँ कहा जाय आम बोली को सुन्दरता के साथ साहित्य में जोड़ा, बांग्ला जिस तरह से लिखा जाता उस तरह बोला नहीं जाता, उदहारण के लिए, आपको लिखना स्मृति है - उच्चारण होगा सृती, मृ यहाँ लोप है, बाण - बान के रूप में उच्चारित किया जायेगा। बांग्ला की मधुरता की वजह, मौलिक या ग्राम्य शब्दों को यथावत प्रयोग करने से है। दरअसल सम्पूर्ण उत्तर पूर्व, मध्य, उत्तर पश्चिम भारत एक ही माला के विभिन्न फूल हैं,बांग्ला, उड़िया व असमिया एक दूसरे से काफी मिलते हैं। लेकिन बांग्ला बिहारी भाषाओँ के सबसे ज्यादा नज़दीक है। इसके पीछे इतिहासिक कारण हैं, बिहार व अविभाजित बंग शताब्दियों से एक ही अंचल रहे हैं। मैथिल, मगही, मागधी, भोजपुरी व बांग्ला दरअसल एक ही पेड़ की शाखाएं हैं। ब्रज व राजस्थानी भाषाओँ का बांग्ला में प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। बिहान शब्द को ही लिया जाय, बिहान या प्रातः एक सुंदर शब्द है जो बांग्ला में भी उसी अर्थ के साथ साहित्य में प्रयोग होता है। उत्तराँचल के कई गीतों में बांग्ला की महक आती है, विशेषतः भोजपुरी के सैकड़ों शब्द बांग्ला में प्रयोग होते हैं। इन उत्तर भारतीय भाषाओँ व बांग्ला में सिर्फ एक ही अंतर है और वो उच्चारण से है, अगर आप मागधीय उच्चारण को बांग्ला से हटा दें तो आप पायेंगे की इन भाषाओँ में जैसे कुछ भी अंतर नहीं है। ब्रज भाषा का बांग्ला में बहुत प्रभाव है, पठायो शब्द को लीजिये, पठायो का अर्थ भेजा, इसी अर्थ में ये शब्द बांग्ला में प्रयोग होता है। सिर्फ बांग्ला में ही नहीं यही शब्द भिन्न स्वरुप में मराठी में भी प्रयोग होता है, मूल रूप से उपर्युक्त भारतीय अंचल असल में एक ही भाषा समूह से सम्बन्ध रखते हैं , कालांतर में स्वाधीन रूप से विकसित हुए, राजनैतिक, विदेशी प्रभाव का असर भी हुआ किन्तु इस विविधता के मध्य हमारी संस्कृति अप्रभावित रही और उसकी एक ही वजह थी सनातन धर्म की आधारभूमि, पूर्ण भारत इस महान संस्कृति के अंतर्गत समाहित है, और ये निरंतर बना रहना चाहिए, उसके लिए हमें भाषायी सद्भाव बनाये रखना चाहिए। ताकि देश की उन्नति में हर एक वर्ग अपना योगदान दे सके।
अध्याय १
भाषाएँ किसी देश की संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाती हैं, भारतीय परिपेक्ष्य में सम्प्रति इसका महत्व बहुत अधिक बढ जाता है, विश्व की सभी भाषाओँ को भाषाविदों ने मूलतः निम्नाकित श्रेणियों में विभक्त किया है।
१.इंडो यूरोपीय या भारत यूरोपीय भाषा
२.सेमेटिक या मध्य एशियाई भाषा समूह
३.अन्य एशियाई व आदिवासी भाषाएँ
भारतीय भाषाएँ मूलतः प्रथम समूह - इंडो यूरोपीय समूह में आते है, अंग्रेजी, जर्मनी, फ्रेंच व् फारसी के साथ, इस आलेख में मैं भारतीय भाषाओँ की साम्यता के बारे में संक्षित विश्लेषण करना चाहूँगा कि हम भारतियों में भाषा को ले कर ढेरों भ्रांतियां पायी जाती हैं, दरअसल हम सब एक साथ शताब्दियों से रह रहे हैं लेकिन फिर भी एक दूसरे से अनभिज्ञ हैं, और अकारण ही एक दूसरे की भाषाओँ को कोसते रहते हैं जबकि धरातल में भारतीय भाषाओँ का उद्गम संस्कृत, पालि व प्राकृत भाषाएँ हैं।
१. प्रथम सत्र में मैं हिंदी ( राजस्थानी, ब्रज, अवधी, मागधी, भोजपुरी मिश्रित ) व बांग्ला,उड़िया, असमिया भाषाओँ का वर्णन व विश्लेषण करना चाहूँगा / इतिहास में न जाते हुए हम देखेंगे कि तमाम उत्तर भारतीय भाषाएँ असल में एक हैं, कोस कोस में जैसे पानी और बोली बदल जाती है ठीक उसी तरह से मुख्य भाषाएँ समय समय में अपने मूल स्वरुप को नया कलेवर देती रहती हैं, बांग्ला - अर्ध मागधीय भाषा है, लिपि देवनागरी से ९०-९८ % तक मिलती है, बांग्ला कि मधुरता उसकी ग्राम्य या मागधीय अपभ्रंश की वजह से द्विगुणित होती है, संस्कृत शब्दों के अलावा साहित्यकारों ने इन मौलिक पालि या प्राकृत या यूँ कहा जाय आम बोली को सुन्दरता के साथ साहित्य में जोड़ा, बांग्ला जिस तरह से लिखा जाता उस तरह बोला नहीं जाता, उदहारण के लिए, आपको लिखना स्मृति है - उच्चारण होगा सृती, मृ यहाँ लोप है, बाण - बान के रूप में उच्चारित किया जायेगा। बांग्ला की मधुरता की वजह, मौलिक या ग्राम्य शब्दों को यथावत प्रयोग करने से है। दरअसल सम्पूर्ण उत्तर पूर्व, मध्य, उत्तर पश्चिम भारत एक ही माला के विभिन्न फूल हैं,बांग्ला, उड़िया व असमिया एक दूसरे से काफी मिलते हैं। लेकिन बांग्ला बिहारी भाषाओँ के सबसे ज्यादा नज़दीक है। इसके पीछे इतिहासिक कारण हैं, बिहार व अविभाजित बंग शताब्दियों से एक ही अंचल रहे हैं। मैथिल, मगही, मागधी, भोजपुरी व बांग्ला दरअसल एक ही पेड़ की शाखाएं हैं। ब्रज व राजस्थानी भाषाओँ का बांग्ला में प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। बिहान शब्द को ही लिया जाय, बिहान या प्रातः एक सुंदर शब्द है जो बांग्ला में भी उसी अर्थ के साथ साहित्य में प्रयोग होता है। उत्तराँचल के कई गीतों में बांग्ला की महक आती है, विशेषतः भोजपुरी के सैकड़ों शब्द बांग्ला में प्रयोग होते हैं। इन उत्तर भारतीय भाषाओँ व बांग्ला में सिर्फ एक ही अंतर है और वो उच्चारण से है, अगर आप मागधीय उच्चारण को बांग्ला से हटा दें तो आप पायेंगे की इन भाषाओँ में जैसे कुछ भी अंतर नहीं है। ब्रज भाषा का बांग्ला में बहुत प्रभाव है, पठायो शब्द को लीजिये, पठायो का अर्थ भेजा, इसी अर्थ में ये शब्द बांग्ला में प्रयोग होता है। सिर्फ बांग्ला में ही नहीं यही शब्द भिन्न स्वरुप में मराठी में भी प्रयोग होता है, मूल रूप से उपर्युक्त भारतीय अंचल असल में एक ही भाषा समूह से सम्बन्ध रखते हैं , कालांतर में स्वाधीन रूप से विकसित हुए, राजनैतिक, विदेशी प्रभाव का असर भी हुआ किन्तु इस विविधता के मध्य हमारी संस्कृति अप्रभावित रही और उसकी एक ही वजह थी सनातन धर्म की आधारभूमि, पूर्ण भारत इस महान संस्कृति के अंतर्गत समाहित है, और ये निरंतर बना रहना चाहिए, उसके लिए हमें भाषायी सद्भाव बनाये रखना चाहिए। ताकि देश की उन्नति में हर एक वर्ग अपना योगदान दे सके।
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- - शांतनु सान्याल
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