अध्याय -३
भारतीय भाषाएँ व् राष्ट्रवाद
भारतीय आंचलिक भाषाओँ को उनके संक्षिप्त उद्गम से अगर जोड़ कर देखें, तो हम पाएंगे कि उनका श्रोत एक ही स्थान से है. ( यहाँ हम द्राविड या दक्षिणी भाषाओँ को नहीं जोड़ रहे हैं क्योंकि उनकी अपनी एक स्वतंत्र मुख्य शाखा है और वो कई अर्थों में उत्तरी, पश्चिमी, मध्य व् पूर्व भारतीय भाषाओँ से कुछ हद तक अलग भी हैं. लेकिन संस्कृत की दृष्टि से वो इतने दूर भी नहीं हैं की हम उन्हें स्पर्श न कर सकें. ) उत्तरी, पश्चिमी, मध्य व् पूर्व भारतीय भाषाएँ दरअसल कहीं न कहीं एक ही बिंदु से निकल कर बृहत् रूप से विकसित हुए.
इनका मुख्य उद्गम स्थान प्राकृत भाषाएँ हैं जिनसे से ही बहुत सारे उपशाखाएँ विभाजित हुईं. बौद्ध व् जैन धर्मीय साहित्य में इन भाषाओँ का बहुत अधिक प्रयोग हुआ क्योंकि ये प्राकृत भाषाएँ जनमानस के मस्तिष्क व् ह्रदय से जुडी थीं, अर्थात पालि, प्राकृत व् संस्कृत इन प्राचीन भाषाओँ का आधुनिक भाषाओँ में प्रभाव रहना स्वाभाविक है, संस्कृत शताब्दियों से पांडित्य भाषा रही, इसलिए इसका स्वरुप व् प्रसार सीमित रहा. लेकिन आधुनिक भाषाओँ ने प्राकृत भाषाओँ के साथइसे जोड़ कर अपनी भाषाओँ में मधुरता के साथ एक ज्ञान का द्वार खोल दिया. वहीँ प्राचीन बौद्ध व् जैन कालों में प्राकृत व् पालि भाषा को राजकीय संरक्षण भी मिला चाहे व् अशोक सम्राट युगीन हो या हषवर्धन कालीन.
आंचलिक भाषाओँ का विकाश कालांतर में मुख्य स्वाधीन भाषाओँ के रूप में हुआ, पालि, प्राकृत व् संस्कृत से निकली उपशाखाएँ कुछ इस तरह फैली ज़रूर लेकिन मगधीय या अर्ध मगधीय भाषाओँ का असर आधुनिक भाषाओँ में अब तक देखा जा सकता है.
१. शौरसेनी, अपभ्रंस, महाराष्ट्रीय व् अर्ध मगधीय उपशाखा में - राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, हिंदी, ब्रज, कन्नौजी, इत्यादि भाषाएँ
२. दूसरी तरफ एक मुख्य उपशाखा अर्ध मगधीय व् प्राच्य मगधीय के अंतर्गत - भोजपुरी, अवधी, मगही,मैथिल,नेपाली, बांग्ला, उड़िया, असमिया, विष्णुपुरिया मणिपुरी इत्यादि भाषाओँ का समावेश है. अर्थात इन अंचलों की सभी भाषाओँ में पालि, प्राकृत, संस्कृत व् अर्ध मगधीय भाषाओँ का पूर्णतः प्रभाव है,ब्राह्मी लिपि से ही अधिकतम लिपियों का उद्गम हुआ, इन अंचलों में निम्नांकित लिपियों का प्रचलन है- १. देवनागरी -राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, हिंदी, ब्रज,मैथिल,नेपाली,इत्यादि .२ बंगला लिपि - बांग्ला,असमिया,विष्णुपुरिया मणिपुरी आदि .३. उत्कली - उड़िया ४.गुजराती लिपि ५. गुरमुखी पंजाबी ६. सिन्धी व् उर्दू ये लिपियाँ अपवाद श्रेणी में हैं क्योंकि इनकी लिपियाँ फारसी या अरबी प्रभावित हैं.
अगर ध्यान से इन तमाम भाषाओँ को देखें व् अध्ययन करें तो हम पाते हैं की लिपियों में भी बहुत कम अंतर मौजूद है. कहने का अर्थ यह हैकी ये सब भाषाएँ वास्तविक रूप से एक दूसरे से घनिष्ठता के साथ जुड़े हुयें हैं और हम एक दूसरे से लड़ते जा रहे हैं . क्रमशः
भारतीय भाषाएँ व् राष्ट्रवाद
भारतीय आंचलिक भाषाओँ को उनके संक्षिप्त उद्गम से अगर जोड़ कर देखें, तो हम पाएंगे कि उनका श्रोत एक ही स्थान से है. ( यहाँ हम द्राविड या दक्षिणी भाषाओँ को नहीं जोड़ रहे हैं क्योंकि उनकी अपनी एक स्वतंत्र मुख्य शाखा है और वो कई अर्थों में उत्तरी, पश्चिमी, मध्य व् पूर्व भारतीय भाषाओँ से कुछ हद तक अलग भी हैं. लेकिन संस्कृत की दृष्टि से वो इतने दूर भी नहीं हैं की हम उन्हें स्पर्श न कर सकें. ) उत्तरी, पश्चिमी, मध्य व् पूर्व भारतीय भाषाएँ दरअसल कहीं न कहीं एक ही बिंदु से निकल कर बृहत् रूप से विकसित हुए.
इनका मुख्य उद्गम स्थान प्राकृत भाषाएँ हैं जिनसे से ही बहुत सारे उपशाखाएँ विभाजित हुईं. बौद्ध व् जैन धर्मीय साहित्य में इन भाषाओँ का बहुत अधिक प्रयोग हुआ क्योंकि ये प्राकृत भाषाएँ जनमानस के मस्तिष्क व् ह्रदय से जुडी थीं, अर्थात पालि, प्राकृत व् संस्कृत इन प्राचीन भाषाओँ का आधुनिक भाषाओँ में प्रभाव रहना स्वाभाविक है, संस्कृत शताब्दियों से पांडित्य भाषा रही, इसलिए इसका स्वरुप व् प्रसार सीमित रहा. लेकिन आधुनिक भाषाओँ ने प्राकृत भाषाओँ के साथइसे जोड़ कर अपनी भाषाओँ में मधुरता के साथ एक ज्ञान का द्वार खोल दिया. वहीँ प्राचीन बौद्ध व् जैन कालों में प्राकृत व् पालि भाषा को राजकीय संरक्षण भी मिला चाहे व् अशोक सम्राट युगीन हो या हषवर्धन कालीन.
आंचलिक भाषाओँ का विकाश कालांतर में मुख्य स्वाधीन भाषाओँ के रूप में हुआ, पालि, प्राकृत व् संस्कृत से निकली उपशाखाएँ कुछ इस तरह फैली ज़रूर लेकिन मगधीय या अर्ध मगधीय भाषाओँ का असर आधुनिक भाषाओँ में अब तक देखा जा सकता है.
१. शौरसेनी, अपभ्रंस, महाराष्ट्रीय व् अर्ध मगधीय उपशाखा में - राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, हिंदी, ब्रज, कन्नौजी, इत्यादि भाषाएँ
२. दूसरी तरफ एक मुख्य उपशाखा अर्ध मगधीय व् प्राच्य मगधीय के अंतर्गत - भोजपुरी, अवधी, मगही,मैथिल,नेपाली, बांग्ला, उड़िया, असमिया, विष्णुपुरिया मणिपुरी इत्यादि भाषाओँ का समावेश है. अर्थात इन अंचलों की सभी भाषाओँ में पालि, प्राकृत, संस्कृत व् अर्ध मगधीय भाषाओँ का पूर्णतः प्रभाव है,ब्राह्मी लिपि से ही अधिकतम लिपियों का उद्गम हुआ, इन अंचलों में निम्नांकित लिपियों का प्रचलन है- १. देवनागरी -राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, हिंदी, ब्रज,मैथिल,नेपाली,इत्यादि .२ बंगला लिपि - बांग्ला,असमिया,विष्णुपुरिया मणिपुरी आदि .३. उत्कली - उड़िया ४.गुजराती लिपि ५. गुरमुखी पंजाबी ६. सिन्धी व् उर्दू ये लिपियाँ अपवाद श्रेणी में हैं क्योंकि इनकी लिपियाँ फारसी या अरबी प्रभावित हैं.
अगर ध्यान से इन तमाम भाषाओँ को देखें व् अध्ययन करें तो हम पाते हैं की लिपियों में भी बहुत कम अंतर मौजूद है. कहने का अर्थ यह हैकी ये सब भाषाएँ वास्तविक रूप से एक दूसरे से घनिष्ठता के साथ जुड़े हुयें हैं और हम एक दूसरे से लड़ते जा रहे हैं . क्रमशः
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